यह तो परिंदों की
मासूमियत है मुर्शिद
वरना दूसरों के घरों में
अब यु कौन आता जाता है
काश कोई ऐसा हो जो
गले लगा कर कहे मुर्शीद
रोया ना कर
तेरे रोने से मुझे भी दर्द होता है
हम तो अकेले थे
अकेले हैं मुर्शिद तुमने
छोड़ कर कोई कमाल
थोड़ी ना किया है

ऐसा है रिश्ता
तेरा मेरा
तू है मुर्शिद
मैं हु मुरीद तेरा
अपनी अच्छाई पर
भरोसा रखो मुर्शिद
की जो उसने तुमको खोया है
वो एक दिन जरूर रोयेगा
भरोसा तो जिंदगी
का भी नहीं मुर्शिद
और तुम इंसानो
पर कर लेते हो
पहले लगता था कि
तुम ही दुनिया हो मुर्शीद
और अब लगता है
कि तुम भी दुनिया हो
नहीं मिलता वक्त
साथ गुजारने को..
“मुर्शिद” हम दोनो एक ही फलक
के सूरज चांद है
हम हर जगह से
ठुकराये गए हैं,
मुर्शिद ! क्या हम भी
जन्नत में जाएंगे ?
उसे लिखा गया
किसी और के नसीब में मुर्शद
वो शख़्स जिसे दुआओं में
मैंने माँगा था

उन्हें हँसते हुए
देखा मुर्शद
हम रोक ना पाए खुद को
हमारी भी हंसी निकल पड़ी
हर किसी से इश्क़
कहाँ होता है मुर्शद
इश्क़ उन्हीं से होता है
जो नसीब में नहै होते
इक उमर बीत गई
पूरी की पूरी मुर्शद
उन्हें देखने की खवाहिश
मगर अधूरी ही रही
वो जब
उनका हाथ छूटा था
यूं लगा
कुछ टुटा था मुर्शद
वो जो कभी हमसे
मोहब्बत करते थे मुर्शद
वो हम पर
हँसते है अब
हमें भी हुई थी
मुर्शद मोहब्बत किसी से
हम भी तड़पे थे
इक शख़्स के लिए

जिसकी ख्वाहिश
होती है हमें मुर्शद
वो शख़्स हमें
मिलता क्यूँ नहीं
वो तो अब पास
भी नहीं आते मुर्शद
ना जाने पास
किसके अब जाने लगे है
बात दिल पर
आ बनी थी मुर्शद
और वो दिल
तोड़ना चाहते थे
हम समझाते तो
समझाते कैसे मुर्शद
वो कुछ सुनना
ही नहीं चाहते थे
कभी रूबरू तक
नहीं हुए थे उनसे मुर्शद
तो बात दिल की
कैसे बताते उन्हें
हमें कोई तरकीब बताए
आप मुस्कराने की मुर्शद
उनके जाने से
हम हंसना भूल गए है

जब चोट लगती है
दिल पे मुर्शद
अकल तब
ठिकाने आती है
ग़ुमान था उन्हें हमारे
जैसे कई मिलेंगे मुर्शद
हमने भी कह दिया जाओ
ढूंढ लो हम तुम्हें अब नहीं मिलेंगे
आवाज़ नहीं होती दिल
टूट फिर भी जाता है मुर्शद
ख्यालों में खोया आशिक़
चलते चलते गिर भी जाता है मुर्शद
मेरे नसीब में मोहब्बत
नहीं लिखी गई मुर्शद
मेरे नसीब में
सिर्फ गम लिखा गया
वो छोड़ी नहीं
गई हमसे मुर्शद
हमें उनकी
आदत जो लगी थी
जब दिल किसी शख्स
पर ठहर जाए ना, मुरशद
तो जेहन किसी और को
कुबूल करने के काबिल नहीं रहता
बाँध सके मुझे
ऐसी कोई बंदिश नहीं, मुर्शिद
पर तेरी बाहों की
बात कुछ और है

काँटे तो नसीब में
आने ही थे मुर्शद
फूल जो गुलाब
दिना था ना हमने.
वो कहती है की मैं मर
जाऊं तो गिला ना करना मुर्शद
हम दुबारा फिर मिलेंगे
खुदा की जन्नत में
मुर्शिद माना कि मौत
बरहक़ है लेकिन
मेरे मरने तक
तो जीने दो
वो केसी और
को मायसर है
मुरशद मेरा ये सदमा
सिरफ खुदा जनता है
मैं पहले जैसा हो जाऊं
मुरशद मगर मुझे
याद तो आए
मैं पहले कैसा था
हम जैसे बेकार
लोग मुरशद
रूठ भी जाए तो
कोई मनाने नहीं आता
उनके साथ तो मैं
सिर्फ तमाशा था
मुरशद इधर तो हमारी
जिंदगी तबाह हो गई
मुर्शीद हमें
भरी जवानी
में गम मिला है
हमारे साथ कोई दगा कर गया
मुरशद तुम उस लड़के का
दुख क्या समझोगे
जो बेरोजगार हो और
उसे मोहब्बत ने घेर लिया
मुरशद गैरों से क्या वफा
की उम्मीद रखते हैं
शाम होते ही मेरा
साया साथ छोड़ जाता है
नफरत के दावे
एक तरफ मुरशद
उसका मेरे नाम
पर मुड़कर देखना गजब था

मेरा नाम हरि शंकर है। जो की झारखण्ड के एक छोटे से गांव में रहता हूँ। मैं GirlShayari.com का संस्थापक हूँ। मैंने इस वेबसाइट में सभी प्रकार की हिंदी शायरी को लिखने की कोशिश की है। आप अपने कमेंट करके मेरा हौसला बढ़ाए।